प्रिय साथियों,
जय भीम !
हम आपको बड़े हर्ष और उत्साह के साथ प्रथम दलित साहित्य महोत्सव, जो 3-4 फरवरी, 2019 को दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में होने वाला है, में आमंत्रित कर रहे हैं। इस कार्यक्रम की परिकल्पना मुख्य रूप से अम्बेडकरवादी वैचारिकी एवं अन्य सकारात्मक परिवर्तनकामी वैचारिकी-समूह को आधार बनाकर की गयी है। जो सहयोगी व्यक्ति-संगठन-समूह सामाजिक न्याय की अवधारणा और सकारात्मक परिवर्तन में भरोसा रखते हैं वे इस परिकल्पना-रूपरेखा के सहयोगी-सहभागी हो सकते हैं। आज जाति-पूंजी आधारित वर्चस्ववादी घराने साहित्य को कब्ज़ाने की होड़ में भारत के अलग-अलग प्रांत में प्रादेशिक भाषाओं में ‘लिटरेचर-कल्चरल फेस्ट’ आयोजित कर रहे हैं। इन जाति-पूंजी वर्चस्ववादी घरानों की यह समझ-मंशा बनी हुई है कि साहित्य-संस्कृति-कला, पढ़े-लिखे और आमजन, व्यक्ति-समाज-समूह को जागरूक-चिंतनशील, संवेदनशील बनाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए ये जाति-पूंजी-वर्चस्ववादी वर्ग अब साहित्य-संस्कृति-कला पर भी अपना आधिपत्य बना लेना चाहते हैं। इन वर्चस्ववादी ताकतों ने मीडिया, सामाजिक-सांस्कृतिक समूह, राजनीतिक पार्टियों और अन्य परिवर्तनकामी संगठनों-समूहों में तो घुसपैठ करके एक हद तक अपना आधिपत्य स्थापित कर ही लिया है और उनके परिवर्तनकामी मूल्यों को कुंद कर दिया है।
ऐसे में हम सामाजिक न्याय और समतावादी समाज में भरोसा रखने वाले हाशियों के समूह और उनके पक्षकारों का ये कार्यभार बन जाता है कि हम अपने साहित्य-संस्कृति-कला के न्याय, समतावादी मूल्यों की रक्षा करें और उसे संरक्षित करें। परिवर्तनकामी और सामाजिक न्याय में भरोसा रखने वाले साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मी-कलाकारों को एकजुट करके साहित्य की दलित-जनोन्मुखी परिवर्तनकामी समानांतर धारा को मजबूत करें। यह परिवर्तनकामी धारा ही भविष्य में समाज-समुदाय की बेहतर, न्यायवादी परिकल्पना-रूपरेखा का आधार बन सकती है।
हमारा स्पष्ट रूप से मानना है कि ‘दलित’ शब्द दलित समुदाय की वेदना, संघर्ष और प्रतिरोधी मूल्यसंस्कृति का वाहक है। यह शब्द अब अन्याय के प्रतिकार और संघर्ष का प्रतीक के रूप में परिवर्तित चुका है। यह शब्द हाशियाकृत समुदायों के अन्याय-उत्पीड़न, पीड़ा-वेदना और प्रतिरोध-संघर्ष का एक ध्वज है और उनकी आत्मा का गान है। यह एक ऐसा अम्ब्रेला बन चुका है जिसके नीचे तमाम हाशियाकृत अस्मिता, समूह और वर्ग शामिल हो रहे हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। हम यहाँ ‘दलित’ शब्द को व्यापकता प्रदान करते हुए इसके अंतर्गत दलित आदिवासी-घुमंतू जनजाति, स्त्री-हिजड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक (पसमांदा-दलित ईसाई सहित) मजदूर-किसान (सर्वहारा) और तमाम वंचित समुदाय, अन्य हाशियाकृत अस्मिताओं को भी दलित शब्द की परिधि में शामिल करने की उद्घोषणा करते हैं। भविष्य के लिए हम दलित शब्द के द्वारा ही अन्य हाशियाकृत अस्मिताएं, वंचित समुदाय और सर्वहारा के अधिकारों के लिए संघर्ष करने की अपनी समझ को यहाँ प्रस्तावित कर रहें हैं। क्योंकि भारत में जो सर्वहारा है यह उपर्युक्त परिभाषित दलित समुदाय ही है। ये उपर्युक्त समुदाय पूंजीवाद के द्वारा भी शोषित हैं और ब्राह्मणवाद से भी। इसीलिए डॉ आंबेडकर ने भारत में दो शत्रु चिन्हित किये थे ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद। हम उन्हीं के विचार को यहाँ विस्तार दे रहे हैं।
मौजूदा समय में दलित साहित्य भारत की सभी भाषाओं में लिखा जा रहा है। सभी भाषाओं में लिखे गए दलित साहित्य में दलित समुदाय के उत्पीड़न की एक जैसी ही महाकारुणिक गाथा है जिसको लेकर कभी कोई महाकाव्य भी नहीं लिखा गया। भारतीय समाज के सभी प्रदेशों के धर्म-समुदायों-वर्गों में आज भी जातिवादी मूल्य-मानसिकता मौजूद है। इसीलिए सभी भाषाओं में लिखे गए दलित साहित्य में इस अन्याय-उत्पीड़न की गूंज सुनाई देती है। यहाँ एक बात उल्लेखनीय है कि दलित साहित्य आज भारत में मुख्यधारा का साहित्य बन चुका है जिसकी गूंज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई देने लगी है। उसके बावजूद जाति-पूंजी-वर्चस्ववादी साहित्य-कला-संस्कृति संस्थान आज भी सचेतन तौर पर दलित साहित्य-कला संस्कृति की अनदेखी करते हैं। उन्होंने सभी संस्थानों पर अपना आधिपत्य बनाया हुआ है। वे इन संस्थानों के संसाधनों का इस्तेमाल अभी भी जाति-पूंजी-मूल्यों को आधार बनाकार लिखे-सृजन किये गए साहित्य-कला-संस्कृति को ही प्रोत्साहित करने में दलित-मेहनतकश की गाढ़ी कमाई झोंक रहे हैं।
हमारा मानना है कि यह दलित लिटरेचर फेस्टिवल उस समानांतर-परिवर्तनकामी साहित्य की धारा का सूत्रपात करेगा जिससे दलित, आदिवासी, घुमंतू, स्त्री, अल्पसंख्यक और पसमांदा समुदाय के लेखन-कला-संस्कृति को एक साथ, एक मंच पर ला सके। यही हमारा ध्येय है और यहीं हमारा उद्देश्य। यह पहला ‘दलित लिटरेचर फेस्टिवल’ उसी व्यापक परियोजना का पहला कदम है। हम उम्मीद करते हैं कि सभी सकारात्मक-न्यायपसंद साथियों-समूहों के सहयोग से यह कदम प्रतिवर्ष आगे बढ़ेगा और अपने मंतव्य में कामयाब होगा।
हम आप सभी को इस दिशा और उद्देश्य के साथ जुड़ने के लिए आपको आमंत्रित करते हैं। समता और न्याय पर आधारित समाज निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए आपके सहभाग और समय की आवश्यकता है। इस आमंत्रण के साथ हम दलित साहित्य महोत्सव 2019 की अवधारणा और इससे जुड़ने वाले वक्ताओं की सूची संलग्न कर रहे हैं। कई प्रोफेसर, शोधार्थी, छात्र-छात्राएं, कलाकार, साहित्यकर्मी, जन आंदोलनों के साथी इसमें अपने विचार और कार्यों को साझा करने के लिए इस महोत्सव में शामिल हो रहे हैं। आईये हमसे जुड़िये, 3-4 फरवरी 2019 को किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में और दलित साहित्य महोत्सव को सफल बनाने में अपना योगदान दें।
आयोजन समिति की ओर से,
संजीव कुमार, सूरज बड़त्या, नीलम, नामदेव
आयोजक संगठन : अम्बेडकरवादी लेखक संघ, हिंदी विभाग, किरोड़ीमल कॉलेज, रश्मि प्रकाशन, लखनऊ, रिदम पत्रिका, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), दिल्ली समर्थक समूह, अलग दुनिया, मंतव्य पत्रिका, अक्षर प्रकाशन और वितरक, दिल्ली, फोरम फॉर डेमोक्रेसी, मगध फाउंडेशन, कहानी पंजाब, अम्बेडकर वर्ल्ड ।
अधिक जानकारी के लिए dalitlitfest@gmail.com पर ईमेल करें, या 9810526252, 9891438166, 9999093364, 9958797409, 8486944483 पर संपर्क करें